भारत ने पकिस्तान सेमत चीन, टर्की और अमेरिका की तकनीक को धूल चटाई
नोएडा। चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, चौथी सबसे शक्तिशाली सेना बल्कि तीसरी कहना ही ठीक है, इस सरकार से मजबूत केबिनेट किसी और देश की दिखती भी नहीं, प्रधानमंत्री की अप्रूवल रेटिंग 80 प्रतिशत छूने को बेताब है। लेकिन मुद्दा है हमारा साथ देने कौन आया, मतलब चमगादड़ को महल मे ले जाओ, तो भी वो उल्टा ही लटकेगा। वैसे तो ऑपरेशन सिंदूर से पहले ही संयुक्त राष्ट्र में एक वोटिंग हुई थी जिसमे अमेरिका, रूस और फ्रांस ने भारत के लिये वोट किया और ब्रिटेन तथा चीन न्यूट्रल रहे।
भारत की विदेश नीति मे कोई संशय नहीं लेकिन प्रश्न है कि 2025 मे हम ऐसी अजीब बाते क्यों कर रहे है? 1971 मे हमारे हालात अलग थे तब जरूरत थी कि दुनिया फॉर्मेलिटी मंे ही सही मगर हमारे पक्ष मे बोले, लेकिन आज क्या आवश्यकता है? भारत ने अकेले एक साथ चीन, टर्की और अमेरिका की तकनीक को धूल चटाई है बिना किसी बाहरी मदद के। लेकिन पाकिस्तानियों से लड़ लड़कर माइंडसेट ही वही हो गया, वो चीन लेकर आया तो हम अमेरिका लाएंगे।
जो विदेशी सहायता पर निर्भर है वह कमजोर
वही बचकानी बात, शिक्षा की कमी नहीं है मगर जब बात समसामयिकी पर आती है तो हम लगभग पाकिस्तान और बांग्लादेश वालांे जैसी बाते करते है। भारत की अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति अब फस्ट वर्ल्ड के देश की तरह है, अमेरिका इराक को मारने गया तो स्वावलंबन से गया, रूस यूक्रेन को पीट रहा है अकेले पीट रहा है, इजरायल गाजा का बाजा बजा रहा है तो अकेले कर रहा है। इसके विपरीत विदेशी सहायता पर वे निर्भर है जो कमजोर है, भारत कमजोर नहीं है इसलिए हमें आवश्यकता नहीं है कि अमेरिका और ब्रिटेन हमारी तरफ से नेतागिरी करें, उन्होंने अपने स्तर पर पहलगाम हमले की निंदा की और भारत की कार्रवाई को सही ठहराया इतना पर्याप्त है।
विकसित देशों की तरह आत्मनिर्भरता
पश्चिमी मीडिया भारत को अंडररेट कर रहा है, क्यों ना करें? आप न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादक बनकर सोचिये, आपको फंड एफ-16 बनाने वाली कम्पनी दे रही है आप क्या ये छापोगे कि रूस के एस-400 ने एफ-16 के परखच्चे उड़ा दिये? इसलिए विदेशी मीडिया से रिपोर्ट कार्ड लेने की जरूरत नहीं है, नाहीं पाकिस्तानियों के आंसू हमारी जीत तय करेंगे। हमारी विजय विकसित देशों की तरह आत्मनिर्भरता से तय होंगी। भारत को फिलहाल ये चाहिए कि चीन से संबंध अच्छे कर ले, अगले 50 वर्षो के लिये अक्साई चीन ड्यू रखे और सिर्फ पाकिस्तान को ठिकाने लगाए।
चीन ने पाकिस्तान को पिटने के लिये छोड़ दिया
चीन पाकिस्तान के समर्थन में आशा के अनुसार नहीं आया उसने पाकिस्तान को पिटने के लिये छोड़ दिया। क्योंकि भारत उसका शत्रु हो या ना हो मगर बाजार है, वो भी जानता है कि भारत की विदेश नीति ढीली नहीं है, गलवान वैली के समय यहाँ टैरिफ लग चुके है। अमेरिका समेत पश्चिम का पाप ये है कि उसने पाकिस्तान पर आतंकवादियों को लेकर दबाव नहीं बनाया। ये बात हमारा डीप स्टेट ध्यान रखेगा, खैर हमने भी कभी तालिबान को लादेन सौपने या फिलिस्तीन को हमास डिसमेंटल करने को नहीं कहा। तो हम किस हक से कहे कि वे पाकिस्तान से संबंध बिगाड़े। बहरहाल हमें अपने व्यवहार में परिवर्तन की जरूरत है, हमारा बौद्धिक और सामाजिक विकास प्राचीन भारत, शैक्षिक योग्यता यूरोप और सिविक सेन्स पूर्वी एशियाई देशांे जैसा हो जाए तो जग सिर मोर हम ही है, बस ये परिवर्तन जल्द आरंभ हो जाये।
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